रामजन्मभूमि पर बनने वाला श्रीराम मंदिर ही नहीं, वास्तव में राष्ट्र मंदिर होगाः केशव

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने रामलला को टेंट से बाहर कर अस्थायी मंदिर में चांदी के सिंहासन पर विराजमान होने को सुखद बताया। उन्होंने कहा कि रामजन्मभूमि पर बनने वाला यह श्रीराम मंदिर ही नहीं, वास्तव में राष्ट्र मंदिर होगा क्योंकि इसमें पूरे राष्ट्र ने अपना योगदान किया है। इस दौरान श्री केशव ने श्रीराम मंदिर के नायक स पूज्य रामचन्द्र दास समेत समस्त रामभक्तों को याद किया। रामभक्तों को याद करते समय उनके आंखों में आस और गला रूद्ध गयाउन्होंने बधवार को फेसबुक पर एक वीडियो जारी कर कहा कि विश्व स्तर से कोरोना को लेकर जो समाचार आ रहे हैं. वह प्रसन्न करने लायक नहीं हैं, परन्तु आज एक सुखद समाचार भी है। उन्होंने कहा कि अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। आज सुबह ब्रह्म मुहूत में भगवान श्रीरामलला अपने तीनों भाईयों के साथ सिंहासन पर विराजमान हो गये. उनके लिए एक अस्थायी मंदिर बनाया गया है। यह तब तक के लिए बनाया गया है, जबतक भव्य मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि मैं इस अवसर पर सभी रामभक्तों व राष्ट्रभक्तों को हृदय से बधाई व शुभकामना देता हूं। यह जो मंदिर का निर्माण हो रहा है यह सिर्फ रामजन्मभूमि पर बनने वाला श्रीराम मंदिर नहीं है। यह श्रीराम मंदिर वास्तव में राष्ट्र मंदिर है। इसमें पूरे राष्ट्र ने अपना योगदान किया है। आज 1992 के बाद 2020 में मुझे भी अपनी आंखों से रामलला को सिंहासन पर विराजमान होते देखने का मौका मिला है। उन्होंने कहा कि श्रीराम मंदिर के नायक रहे पूज्य स्व. अशोक सिंघल जी, पूज्य रामचन्द्र दास जी इस मंदिर आन्दोलन को प्रारम्भ करने वाले रहे हैं। ये सब इस धरती पर सशरीर उपस्थित नहीं है, ये लोग दिव्यलोक में विराजमान हैं। इस मंदिर आन्दोलन में अनेक रामभक्तों का बलिदान हुआ है। इसका सुख वही महसूस कर सकता है, जो रामभक्त करता है और जिसने राममंदिर के लिए संघर्ष किया है। आज का दिन बहुत ही पवित्र व पावन है। रामभक्त केवल उप्र में और देश में ही नहीं, पूरे विश्व भर में हैं। वे आज कितना खुश हुये होंगे, मैं इसका अंदाजा लगा सकता हूं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने कोरोना संक्रमण के कारण घरों के अन्दर रहने और घर के बाहर लक्ष्मण रेखा खींचने का जो संदेश दिया था. उसका पालन करते हए इच्छा होते हुये भी अयोध्या नहीं जा सका। इसके बावजूद आज पूज्य अशोक सिंघल, पूज्य रामचन्द्र दास और ऐसे कोटि-कोटि रामभक्तों का स्मरण हुआ, जिन्होंने रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए अपना योगदान दिया। किसी ने गिलहरी के रूप में दिया तो किसी ने हनुमान जी के रूप में दिया। उन सबकी ओर से मैंने भगवान से प्रार्थना की कि हे प्रभु, सभी की ओर से सिंहासन पर विराजमान होने के बाद पहला भोग मेरी ओर से, समस्त रामभक्तों की ओर से स्वीकार्य करने की कृपा करें। श्रीराम जन्मभूमि के पूजारी जी ने मेरा यह निवेदन स्वीकार कर लिया और आज जब भगवान को प्रथम भोग यानी छप्पन भोग उनके लिए परोसा गया तो यह भोग केशव प्रसाद की ओर से नहीं, बल्कि यह भोग कोटि-कोटि उन रामभक्तों की ओर से लगाया गया जो भगवान राम की भक्ति करते हैं, जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष करते हुए बलिदान दिया है।